हर शख्स अपनी ज़िन्दगी में काफ़ी कुछ अनुभव करता है, और मैंने अपनी ज़िन्दगी के कुछ वर्षों के अनुभव को चंद ग़ज़लों/नज़्मों में बयाँ करने की कोशिश की है.
मैं कोई 'मिर्ज़ा ग़ालिब' नहीं हूँ और उनका एक छोटा सा अंश भी न बन पाऊँ, लेकिन मेरा मानना है की मेरा दर्द उनसे कम भी नहीं है. उम्मीद करता हूँ की इस दुनिया में किसी एक शख्स को भी मेरी लिखी ग़ज़लों से कुछ राहत मिले, जैसा मुझे 'ग़ालिब' के ग़ज़लों से मिली थी. उस दिन समझूंगा मेरा लिखना मुकम्मल हुआ.
चंद ग़ज़लें और कुछ नज़्में ही इस पुस्तक की पहचान हैं, और शायद मेरी भी.
'दिल से' में उन ग़ज़लों और नज़्मों को जगह मिली है जो दिल के किसी भीतरी सतह पे छुपे जज़्बातों को बाहर लेके आयीं.
उम्मीद करूँगा आप सब इन्हें पढ़ें 'दिल से'!