डॉ. निलय खरे
वर्तमान में पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में भारत सरकार के सलाहकार/वैज्ञानिक के पास न केवल प्रशासन का बल्कि अंटार्कटिक, आर्कटिक, दक्षिणी महासागर जैसे भौगोलिक दृष्टि से अलग स्थानों में भी शोध किया है। उन्हें पुरापाषाण विज्ञान का उपयोग करते हुए जीवाश्म अनुसंधान के क्षेत्र में लगभग 30 वर्षों का अनुभव है। इसके अतिरिक्त वैज्ञानिक कार्यक्रमों के प्रबंधन/ प्रशासन/समन्वय (भारतीय धु्रवीय कार्यक्रम सहित) आदि का गहन अनुभव है। उन्होंने उष्णकटिबंधीय समुद्री क्षेत्र पर डॉक्टरेट
(पी-एच.डी.) और दक्षिणी उच्च अक्षांश समुद्री क्षेत्रों पर डॉक्टर ऑफ साइंस (डी.एस.सी.) की उपाधि प्राप्त की है। उन्होंने कई भारतीय विश्वविद्यालयों द्वारा मानद प्रोफेसर और सहायक प्रोफेसर से सम्मानित किया गया है।
उनके प्रकाशनों की अत्यंत प्रभावशाली सूची है जिसमें अतिथि संपादक के रूप में अनेक प्रसिद्ध राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पत्रिकाओं के 7 विशेषांक शामिल हैं। भारत सरकार और कई पेशेवर निकायों ने उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया है।
उन्होंने व्याख्यान, रेडियो वार्त्ता और लेखों द्वारा देशभर में महासागर विज्ञान और धु्रवीय विज्ञान को लोकप्रिय बनाने हेतु सार्थक प्रयास किए हैं। वैज्ञानिक अन्वेषण के लिए 2008 में अंतरराष्ट्रीय ध्रुवीय वर्ष अभियान के दौरान ‘साइंस पब’ में एक प्रतिभागी के रूप में वह आर्कटिक महासागर गए और वहाँ की यात्रा करनेवाले पहले भारतीय बने।