शुतुरमुर्ग़ -
'शुतुरमुर्ग़' विधाता की वैविध्यप्रियता और विनोद-प्रियता का नमूना तो है ही, जीवन के कटु सत्यों से पलायन करने तथा आत्म-वंचक निर्भयता से परितुष्ट हो जाने का प्रतीक भी है। शुतुरमुर्ग़ नाटक में ज्ञानदेव अग्निहोत्री ने इस प्रतीक को राजनीति के प्रत्येक महानायक पर इतनी सहजता और सूझ-बूझ से आरोपित किया है कि पूरा नाटक अद्भुत यथार्थपरक अर्थवत्ता से चमक उठा है।
अर्थगर्भी कथ्य, मनोरंजक मंचीय परिकल्पना, अभिनव प्रयोग—अनेक दृष्टियों से 'शुतुरमुर्ग़' एक ऐसी कृति है कि जिसे आप पढ़ना चाहेंगे, मंच पर अभिनीत देखना चाहेंगे।
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Specifications
Book Details
Publication Year
2018
Contributors
Author Info
ज्ञानदेव अग्निहोत्री -
जन्म: 5 अगस्त, 1935, कानपुर। अंग्रेज़ी साहित्य और समाजशास्त्र में एम.ए.। हिन्दी के प्रतिष्ठित नाटककार। भारतीय रंगमंच पर शुतुरमुर्ग बहुचर्चित नाट्य-कृति।
लेखन: शुतुरमुर्ग़ (नाटक), नेफ़ा की एक शाम (नाटक), माटी जागी रे (नाटक), वतन की आबरू (नाटक), इतवार ज़िन्दाबाद (एकांकी संकलन), चिराग़ जल उठा (ऐतिहासिक नाटक), अनुष्ठान (नाटक, उ.प्र. संगीत नाटक अकादेमी द्वारा पुरस्कृत)।