जिस प्रकार सुसुप्तावस्था से आदमी को जगाने के लिए उसे आवाज दी जाती है, उसी प्रकार जाग्रत अवस्था में अपने जीवन का लक्ष्य चुनने और लक्ष्य को साकार करने के लिए प्रेरणा दी जाती है। प्रेरणा पाने वाले पर प्रेरणा का प्रभाव तभी पड़ता है, जब उसे प्रेरणा देनेवाले की योग्यता और अनुभव पर विश्वास तथा उसके ज्ञान के प्रति श्रद्धा होती है। जिस प्रकार वैज्ञानिक सिद्धान्त की सत्यता प्रयोग द्वारा जाँची जाती है, उसी प्रकार प्रेरणा की सत्यता को प्रेरक को स्वयं अपने पर अजमाकर देखना चाहिए। सफलता की कंुजी का लेखक इस पुस्तक का पहला नायक स्वयं है। एकबार एक माँ ने अपने लड़का को गुड़ खाना छोड़ देने के लिए, प्रेरणा देने के लिये, गाँधी जी से आग्रह किया। गाँधी जी ने दोनों को एक सप्ताह के बाद बुलाया। जब दूसरी बार दोनो आये तो गाँधी जी ने लड़का से कहा- बेटा! गुड़ खाना छोड़ दो, इसमें बहुत सारी बुराईयाँ है। लड़का ने गुड़ खाना छोड़ दिया। किसी ने गाँधी जी से पूछा- आपने पहली बार लड़का को गुड़ खाने से मना क्यों नही कर दिया। गाँधी जी ने जवाब दिया-उस समय मैं स्वयं गुड़ खाता था । पहले मैंने स्वयं गुड़ खाना छोड़ा। उसके बाद मैंने लड़का को गुड़ न खाने का परामर्श दिया। प्रेरक को प्रेरणा देने से पहले स्वयं पर उसकी जाँच कर लेना चाहिए। यह पुस्तक लेखक के स्वयं के अनुभव तथा अनेक विभूतियों की जीवनी से प्रेरणा लेकर लिखी गई है, मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है। इसका प्रमाण मेरे झारखंड का महापुरुष दशरथ माँझी , मेरी प्रेरणा को सत्य साबित करने के लिए काफी है। प्रेरणा पर अधिकांश पुस्तकें पश्चिमी लेखकों, खासकर सरमनों की है, जो अपने को दैवी शक्ति सम्पन्न बताकर अपने-अपने दृष्टिकोण से मानव जीवन की एकांगीं व्याख्या करते हैं। मानव आधिदैविक और आधिभौतिक प्राणी है, जिसको समझने के लिये परा-विज्ञान का ज्ञान आवश्यक हैं। इस पुस्तक का लेखक ‘‘भाग्य’’ का रहस्य जानने के लिए परा-विज्ञान का मंथन करके ‘‘भाग्य बनाम कर्म’’ पुस्तक की रचना की। भाग्य और कर्म का रहस्य समझने के बाद ‘‘सफलता की कुंजी’’ पुस्तक की रचना की गई है। पुस्तक के समर्पण में हीं पुस्तक का सार सन्निहित है। कर्मठ तथा पुरुषार्थी इस पुस्तक से प्रेरणा ग्रहण करके अपने लक्ष्य को संकल्प तथा कर्म द्वारा साकार कर सकते है। यह पुस्तक सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि करने और कुछ विशेष बनने के लिये लिखी गई है। उठो, जागो और लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको नहीं। पाठकों के लिये यही इस पुस्तक का संदेश है।